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10th संस्कृत नवम पाठ स्वामी दयानंद



पाठ-परिचय–स्वामी दयानन्द आधुनिक भारत के महान् समाज-सुधारक माने जाते हैं। इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अहम् भूमिका निभाई। आर्य-समाज की स्थापना की तथा वेदों का प्रचार-प्रसार किया। साथ ही समाज की अनेक कुरीतियों का विरोध किया तथा राष्ट्रीयता के महत्त्व से लोगों को अवगत कराया। इन्होंने सनातन धर्म अर्थात् वैदिक धर्म को सच्च धर्म मानते हुए दूषित प्रथाओं का विरोध किया। उनका मूल उद्देश्य विश्व कल्याण, परोपकार, सदाचरण स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह का समर्थन छुआछूत का विरोध तथा वेदों का प्रचार था।

मूल पाठ : 

(आधुनिक भारते ........... निरुपयति।

हिन्दी-आधुनिक भारत में समाज और शिक्षा का महान् उद्धारक स्वामी दयानन्द थे। आर्य समाज नामक संस्था की स्थापना से इनका प्रभूत सहयोग भारतीय समाज ने ग्रहण किया। भारतवर्ष में राष्ट्रीयता का बोध कराना भी इनका विशेष कार्य था। समाज में अनेक दूषित प्रथाओं को खंडन कर शुद्ध तत्त्वज्ञान का प्रचार दयानन्द ने किया। यह पाठ स्वामी दयानन्द का परिचय और समाजोद्धार में उनका योगदान का निरूपण करता है

मूल पाठ : 

मध्यकाले नाना कुत्सितरीतयः, भारतीयं समाजम् अदूषयन् । जातिवादकृतं वैषम्यम्, अस्पृश्यता; धर्मकार्येषु आडम्बरः , स्त्रीणामशिक्षा, विंधवानां गर्हिता स्थितिः, शिक्षायाः अव्यापकता इत्यादयः दोषाः प्राचीनसमाजे आसन् । अतः अनेके दलिता: हिन्दुसमाजं तिरस्कृत्य धर्मान्तरणं स्वीकृतवन्तः । एतादृशे विषमे काले ऊनविंशशतके केचन धर्मोद्धारकाः सत्यान्वेषिणः समाजस्य वैषम्यनिवारकाः भारते वर्षे प्रादुरभवन् । तेषु नूनं स्वामी दयानन्दः विचाराणां व्यापकत्वात् समाजोद्धरणस्य संकल्पाच्च शिखर- स्थानीयः ।

हिन्दी-

मध्यकाल में अनेक कुरीतियाँ भारतीय समाज को दूषित की थीं। जातिवाद से उत्पन्न विषमता, छुआछूत, धर्मकार्य में आडम्बर, स्त्रियों की अशिक्षा, विधवाओं की गर्हित स्थिति-शिक्षा की अव्यापकता इत्यादि दोष प्राचीन समाज में थे। इसलिए हिन्दू समाज के अनेक दलित विस्तृत होकर धर्मान्तरण, अर्थात् दूसरे धर्म को स्वीकार कर लिए। ऐसा विषम समय में उन्नीसवीं शताब्दी में धर्मोद्धारक, सत्य को अन्वेषण करनेवाले सामाजिक विषमता को दूर करनेवाले भारतवर्ष में उत्पन्न हुए। उनमें स्वामी दयानन्द व्यापक विचार रखनेवालों में और समाजोद्धार के संकल्प लेनेवालों में निश्चित रूप से सर्वोच्च थे।

मूल पाठ : 

स्वामिनः जन्म गुजरातप्रदेशस्य टंकारानामके ग्रामे 1824 ईस्वीय वर्षेऽभूत् । बालकस्य नाम मूलशङ्करः इति कृतम् । संस्कृतशिक्षया एवाध्ययनस्यास्य प्रारम्भो जातः । कर्मकाण्डिपरिवारे तादृश्येव व्यवस्था तदानीमासीत् । शिवोपासके परिवारे मूलशङ्करस्य कृते शिवरात्रिमहापर्व उद्बोधकं जातम् । रात्रिजागरणकाले मूलशङ्करेण दृष्टं यत् शङ्करस्य विग्रहमारुह्य मूषकाः विग्रहार्पितानि द्रव्याणि भक्षयन्ति । मूलशङ्करोऽचिन्तयत् यत् विग्रहोऽयमकिञ्चित्करः । वस्तुतः देवः प्रतिमायां नास्ति । रात्रिजागरणं विहाय मूलशङ्करः गृहं गतः । ततः एव मूलशङ्करस्य मूर्तिपूजां प्रति अनास्था जाता। वर्षद्वयाभ्यन्तरे एव तस्य प्रियायाः स्वसुनिधनं जातम् । ततः मूलशङ्करे वैराग्यभावः समागतः । गृहं परित्यज्य विभिन्नानां विदुषां सतां साधूनाञ्च सङ्गतौ रममाणोऽसौ मथुरायां विरजानन्दस्य प्रज्ञाचक्षुणः विदुषः समीपमगमत्।  तस्मात् आर्षग्रन्थानामध्ययनं प्रारभत । विरजानन्दस्य उपदेशात् वैदिकधर्मस्य प्रचारे सत्यस्य प्रसारे च स्वजीवनमसावर्पितवान् । यत्र-तत्र धर्माडम्बराणां खण्डनमपि स चकार। अनेके पण्डिताः तेन पराजिताः तस्य मते च दीक्षिताः।

हिन्दी-

स्वामीजी का जन्म गुजरात प्रदेश के टंकारा नामक ग्राम में 1824 ईस्वी वर्ष में हुआ था। बालक का नाम मूलशंकर रखा गया। इनकी शिक्षा संस्कृत अध्ययन से प्रारम्भ हुई। कर्मकाण्डी परिवार में उसी प्रकार की व्यवस्था उस समय थी। शिवोपासक परिवार में मूलशंकर के लिए शिवरात्रि महापर्व उद्बोधक हुआ । रात्रि जागरण के समय मूलशंकर ने देखा कि शंकर के प्रतिमा पर चढ़कर चूहे प्रतिमा पर अर्पित द्रव्यों को खाते हैं। मूलशंकर ने सोचा कि यह मूर्ति कुछ नहीं करनेवाला है। सचमुच देवता प्रतिमा में नहीं हैं और वह रात्रि जागरण छोड़कर घर चला गया। तब से ही मूलशंकर में मूर्तिपूजा के प्रति अनास्था उत्पन्न हो गई। दो वर्ष के अन्दर उनकी प्रिया का निधन हो गया। इससे मूलशंकर में वैराग्य भाव आ गया। घर छोड़कर विभिन्न विद्वानों, सज्जनों और साधुओं की संगति में रमते हुए यह मथुरा में विरजानन्द प्रज्ञाचक्षु विद्वान् के समीप आ गये। उनसे ऋषिग्रन्थों का अध्ययन शुरू किया। विरजानन्द के उपदेश से वैदिक धर्म का प्रचार में और सत्य के प्रसार में उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। जहाँ-तहाँ धर्मांडम्बरों का उन्होंने खंडन भी किया। अनेक पंडित उनसे पराजित होकर उनके मत में दीक्षित हो गये, अर्थात् उनके सिद्धान्त को मान लिया।

मूल पाठ : 

स्त्रीशिक्षायाः विधवाविवाहस्य मूर्तिपूजाखण्डनस्य अस्पृश्यतायाः बालविवाहस्य च निवारणस्य तेन महान् प्रयासः विभिन्नैः समाजोद्धारकैः सह कृतः । स्वसिद्धान्तानां सङ्कलनाय सत्यार्थप्रकाशनामक ग्रन्थं राष्ट्रभाषायां विरच्य स्वानुयायिनां स महान्तमुपकारं चकार । किञ्च वेदान् प्रति सर्वेषां धर्मानुयाविनां ध्यानमाकर्षयन् स्वयं वेदभाष्याणि संस्कृतहिन्दीभाषयोः रचितवान् । प्राचीनशिक्षायां दोषान् दर्शयित्वा नवीनां शिक्षा पद्धतिमसावदर्शयत् । स्वसिद्धान्तानां कार्यान्वयनाय 1875 ईस्वी वर्षे मुम्बईनगरे आर्यसमाजसंस्थायाः स्थापनां कृत्वा अनुयायिनां कृते मूर्तरूपेण समाजस्य संशोधनोद्देश्यं प्रकटितवान् ।

हिन्दी :-

स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह, मूर्तिपूजा, छूआछूत और बाल विवाह प्रथा निवारण का उनके द्वारा महान प्रयास विभिन्न समाजोद्धारकों के साथ मिलकर किया। अपने सिद्धान्तों का संकलन के लिए उन्होंने सत्यार्थप्रकाश नामक एक पुस्तक राष्ट्रभाषा में लिखकर इन्होंने अपने अनुयायियों को बहुत बड़ा उपकार किया। किन्तु वेदों के प्रति सभी धर्मानुयायियों का आकर्षण के लिए इन्होंने स्वयं वेदों का भाष्य संस्कृत और हिन्दी भाषाओं में लिखा। प्राचीन शिक्षा में दोषों को दिखाते हुए उन्होंने नवीन शिक्षा पद्धति का प्रदर्शन किया। अपने सिद्धान्तों के कार्यान्वयन के लिए 1875 ईस्वी वर्ष में मुम्बई नगर में आर्य समाज संस्था की स्थापना कर अपने अनुयायियों के लिए प्रत्यक्ष रूप में सामाजिक बुराइयों के संशोधन का मार्ग स्पष्ट किया।

मूल पाठ : 

सम्प्रति आर्यसमाजस्य शाखा: प्रशाखाश्च देशे विदेशेषु च प्रायेण प्रतिनगरं वर्तन्ते । सर्वत्र समाजदूषणानि शिक्षामलानि च शोधयन्ति । शिक्षापद्धतौ गुरुकुलानां डी0 ए0 वी0 (दयानन्द एंग्लो वैदिक) विद्यालयानाञ्च समूहः स्वामिनो दयानन्दस्य मृत्योः (1833 ईस्वीय) अनन्तरं प्रारब्धः तदनुयायिभिः । वर्तमानशिक्षापद्धतौ समाजस्य प्रवर्तने च दयानन्दस्य आर्यसमाजस्य च योगदानं सदा स्मरणीयमस्ति ।

हिन्दी:- 

इस समय आर्य समाज की शाखा-प्रतिशाखाएँ देश-विदेश में प्रायः सभी नगरों में हैं। वे सभी जगह सामाजिक दूषणों और शिक्षा में आये भ्रान्त विचारों को संशोधन करते हैं। इनके अनुयायियों ने शिक्षा-पद्धति में गुरुकुलों का प्रचलन के लिए डी० ए० वी० (दयानन्द एंग्लो वैदिक) विद्यालयों के समूह को इनकी मृत्यु 1833 ईस्वी वर्ष के बाद प्रारम्भ किये। वर्तमान शिक्षा पद्धति में और सामाजिक बदलाव के लिए दयानन्द तथा आर्य समाज का योगदान सर्वदा स्मरणीय है।

अति लघु प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1. स्वामी दयानंद का निधन कब हुआ था ?

उत्तर - 1883 में 

प्रश्न 2. स्वामी दयानंद ने कैसा काम किया ?

उत्तर - समाज द्वार 

प्रश्न 3. आर्य शब्द का क्या अर्थ है ?

उत्तर - श्रेष्ट 

प्रश्न 4. स्वामी दयानंद का जन्म कब हुआ था ?

उत्तर - 1824 ईसवी में

प्रश्न 5. स्वामी दयानंद ने किस नगर में आर्य समाज की स्थापना की ?

उत्तर - मुंबई 

प्रश्न 6. गुजरात प्रदेश स्थित टंकारा ग्राम किसका जन्म स्थल है ?

उत्तर - स्वामी दयानंद 

प्रश्न 7. स्वामी दयानंद के बचपन का नाम क्या था ?

उत्तर - मूल शंकर 

प्रश्न 8. आर्य समाज की स्थापना कब हुई ?

उत्तर - 1875 

प्रश्न 9. स्वामी दयानंद के माता-पिता किसके उपासक थे ?

उत्तर - शिव

प्रश्न 10. स्वामी दयानंद घर छोड़कर कहां गए ?

उत्तर - मथुरा 

प्रश्न 11. आर्य समाज की स्थापना किस नगर में हुई ?

उत्तर-  मुंबई 

प्रश्न 12. स्वामी दयानंद का जन्म कहां हुआ ?

उत्तर - गुजरात के टंकारा ग्राम में 

प्रश्न 13. मूल शंकर किसका नाम था ?

उत्तर - स्वामी दयानंद 

प्रश्न 14. स्वामी दयानंद कौन थे 

उत्तर - आर्य समाज के संस्थापक 

प्रश्न 15. आर्य समाज के संस्थापक कौन थे ?

उत्तर - स्वामी दयानंद 

प्रश्न 16. मूर्ति पूजा के विरोधी कौन थे ?

उत्तर - स्वामी दयानंद 

प्रश्न 17. समाज सुधारक कौन थे ?

उत्तर - स्वामी दयानंद 

प्रश्न 18. किसके कहने पर स्वामी दयानंद ने वैदिक ग्रंथ का प्रचार किया ?

उत्तर - विरजानंद 

प्रश्न 19. सत्यार्थ प्रकाश किसकी रचना है ?

उत्तर - स्वामी दयानंद

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10th Sanskrit (संस्कृत)

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