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10th संस्कृत शास्त्रकाराः 10th संस्कृत पाठ 14



पाठ-परिचय-

प्रस्तुत पाठ 'शास्त्रकाराः' में भारतीय शास्त्रकारों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। भारत शास्त्रकारों की जन्मभूमि है, जहाँ एक-से-एक महान् शास्त्रकार हुए हैं। उन्हीं शास्त्रकारों की कृति एवं विशेषता का वर्णन प्रश्नोत्तर शैली में किया गया है।

मूल पाठ : (भारते वर्षे ............. वर्तते।)

हिन्दी - भारतवर्ष में शास्त्रों की बहुत बड़ी परम्परा है, ऐसा सुना जाता है। शास्त्र समस्त ज्ञानों का प्रमाणभूत स्रोत स्वरूप हैं । इस पाठ में प्रमुख शास्त्रों के साथ-साथ उनके प्रवर्तकों का भी निरूपण किया गया है। मनोरंजन के लिए इस पाठ में प्रश्नोत्तर प्रणाली का आलम्बन किया गया है।

मूल पाठ : (शिक्षकः कक्षायां प्रविशति, छात्राः सादरमुत्थाय तस्याभिवादनं कुर्वन्ति ।)

हिन्दी - शिक्षक वर्ग में प्रवेश करते हैं, छात्र आदर के साथ उठकर उनका अभिवादन (नमस्कार) करते हैं।

शिक्षकः-उपविशन्तु सर्वे। अद्य युष्माकं परिचयः संस्कृतशास्त्रैः भविष्यति।

हिन्दी - आप सभी बैठ जायें। आज आपलोगों का परिचय शास्त्रों से होगा, अर्थात् शास्त्रों के सम्बन्ध में बताया जायेगा।

युवराजः-गुरुदेव ! शास्त्रं किं भवति ?

हिन्दी-गुरुदेव ! शास्त्र क्या होता है ?

शिक्षकः-शास्त्रं नाम ज्ञानस्य शासकमस्ति। मानवानां कर्तव्याकर्त्तव्यविषयान् तत् शिक्षयति। शास्त्रमेव अधुना अध्ययनविषयः (subject) कथ्यते, पाश्चात्यदेशेषु अनुशासनम् (discipline) अपि अभिधीयते। तथापि शास्त्रस्य लक्षणं धर्मशास्त्रेषु इत्थं वर्तते

            प्रवृत्तिर्वा निवृत्ति नित्येन कृतकेन वा।

            पुंसा येनोपदिश्येत तच्छास्त्रमभिधीयते ॥

हिन्दी :- शास्त्र नाम ज्ञान के शासक का है, अर्थात् विभिन्न प्रकार के ज्ञानों पर शासन करने वाले को शास्त्र कहते हैं । मनुष्यों को कर्त्तव्या-कर्त्तव्य का ज्ञान वह सिखलाता है। शास्त्र को ही आजकल अध्ययन-विषय कहा जाता है। पाश्चात्य देशों में उसे अनुशासन (discipline) भी कहते हैं। तो भी शास्त्र का लक्षण धर्मशास्त्रों में यह है

अर्थात् मानवीय प्रवृत्ति, निवृत्ति और नित्य कार्य की विधि आदि मनुष्यों को जो बताता है, उसे शास्त्र कहते हैं ।

अभिनवः- अर्थात् शास्त्रं मानवेभ्यः कर्त्तव्यम् अकर्तव्यञ्च बोध यति । शास्त्रं नित्यं भवतु वेदरूपम्, अथवा कृतकं भवतु ऋष्यादिप्रणीतम्

हिन्दी - अर्थात् शास्त्र मनुष्यों को कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य का ज्ञान देता है। शास्त्र नित्य और वेदरूप हैं। यह ऋषि-मुनियों से प्रणीत और निर्देशक तत्त्व है।

शिक्षकः- सम्यक् जानासि वत्स ! कृतकं शास्त्रं ऋषयः अन्ये विद्वांसः वा रचितवन्तः। सर्वप्रथमं षट् वेदाङ्गानि शास्त्राणि सन्ति। तानि - शिक्षा, कल्पः, व्याकरणम्, निरुक्तम्, छन्दः ज्योतिषं चेति ।

हिन्दी - क्या भलीभांति जानते हो वत्स! यह कर्त्तव्या-कर्त्तव्य को निदेशक कृतक शास्त्र ऋषियों या अन्य विद्वानों के द्वारा निर्मित है सर्वप्रथम छ: वेदांग शास्त्र हैं। वे शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्द और ज्योतिष हैं।

इमरान:- गुरुदेव ! एतेषां विषयाणां के-के प्रणेतारः?

हिन्दी- गुरुदेव ! इन विभिन्न शास्त्रों को कौन-कौन बनाने वाले हैं ?

शिक्षकः- शृणुत यूयं सर्वे सावहितम् । शिक्षा उच्चारणप्रक्रियां बोधयति। पाणिनीयशिक्षा तस्याः प्रसिद्धो ग्रन्थः । कल्पः कर्मकाण्डग्रन्थः सूत्रात्मकः । बौधायन-भारद्वाज-गौतम-वसिष्ठादयः ऋषयः अस्य शास्त्रस्य रचयितारः । व्याकरणं तु पाणिनिकृतं प्रसिद्धम् । निरुक्तस्य कार्य वेदार्थबोः । तस्य रचयिता यास्कः । छन्दः पिङ्गलरचिते सूत्रग्रन्थे प्रारब्धम् ।  ज्योतिषं लगधरचितेन वेदाङ्गज्योतिषग्रन्थेन प्रावर्तत ।

हिन्दी - तुम सब सावधानीपूर्वक सुनो । शिक्षा शास्त्र उच्चारण प्रक्रिया का ज्ञान देता है। पाणिनीय शिक्षा इसका प्रसिद्ध ग्रंथ है। कल्प-सूत्रात्मक कर्मकाण्ड विधि का ग्रन्थ है। बौधायन, भारद्वाज, गौतम, वसिष्ठादि ऋषि इस शास्त्र का रचयिता हैं। पाणिनिकृत व्याकरण तो प्रसिद्ध ही है। निरूक्त वेदार्थ बोधक है। इसका रचयिता यस्क हैं। छन्द पिङ्गलाचार्य कृत सूत्रात्मक ग्रन्थ उपलब्ध होता है। ज्योतिष शास्त्र का वेदाङ्गज्योतिष आचार्य लागध के द्वारा निर्मित है।

अब्राहमः- किमेतावन्तः एव शास्त्रकाराः सन्ति ?

हिन्दी - क्या ये लोग शास्त्रकार हैं ?

शिक्षकः- नहि नहि। एते प्रवर्तकाः एव । वस्तुतः महती परम्परा एतेषां शास्त्राणां परवर्तिभिः सञ्चालिता । किञ्च, दर्शनशास्त्राणि षट् देशेऽस्मिन् उपक्रान्तानि।

हिन्दी - नहीं नहीं। ये शास्त्र प्रवर्तक हैं। वास्तव में इन शास्त्रों के प्रवर्तकों की बहुत बड़ी परम्परा है, परवर्ती लोगों ने उसे एक लम्बी अवधि से संचालित करते रहते हैं। किन्तु दर्शनशास्त्र इस देश में छः माने जाते हैं।

श्रुतिः- आचार्यवर ! दर्शनानां के-के प्रवर्तकाः शास्त्रकाराः ?

हिन्दी - आचार्यवर! दर्शनशास्त्र के कौन-कौन प्रर्वतक शास्त्रकार हैं?

शिक्षकः- सांख्यदर्शनस्य प्रवर्तकः कपिलः। योगदर्शनस्य पतञ्जलिः । एवं गौतमेन न्यायदर्शनं रचितं कणादेन च वैशेषिकदर्शनम् । जैमिनिना मीमांसादर्शनम्, बादरायणेन च वेदान्तदर्शनं प्रणीतम् । सर्वेषां शताधिकाः व्याख्यातारः स्वतन्त्रग्रन्थकाराश्च वर्तन्ते ।

हिन्दी - सांख्यदर्शन के प्रवर्तक कपिल हैं। योग दर्शन के पतञ्जली इसी प्रकार गौतम ने न्यायदर्शन की रचना की और कणाद ने वैशेषिक दर्शन की। जैमिनि मीमांसादर्शन और वादरायणेन वेदान्त दर्शन की रचना की। सभी प्रायः सैकड़ों से अधिक व्याख्याकार और स्वतन्त्र ग्रन्थकार हैं।

गार्गी - गुरुदेव ! भवान् वैज्ञानिकानि शास्त्राणि कथं न वदति ?

हिन्दी - गुरुदेव ! आप वैज्ञानिक शास्त्रों के सम्बन्ध में क्यों नहीं कहते ?

शिक्षकः- उक्तं कथयसि । प्राचीनभारते विज्ञानस्य विभिन्नशाखानां शास्त्राणि प्रावर्तन्त । आयुर्वेदशास्त्रे चकरसंहिता, सुश्रुतसंहिता चेति शास्त्रकारनाम्नैव प्रसिद्ध स्तः । तत्रैव रसायनविज्ञानम्, भौतिकविज्ञानञ्च अन्तरभू स्तः । ज्योतिषशास्त्रेऽपि खगोलविज्ञानं गणितम् इत्यादीनि शास्त्राणि सन्ति । आर्यभटस्य ग्रन्थः आर्यभटीयनामा प्रसिद्धः। एवं वराहमिहिरस्य बृहत्संहिता विशालो ग्रन्थः यत्र नाना विषयाः समन्विताः । वास्तुशास्त्रमपि अत्र व्यापक शास्त्रमासीत् । कृषिविज्ञानं च पराशरेण रचितम् । वस्तुतो नास्ति शास्त्रकाराणाम् अल्या संख्या।

हिन्दी - ठीक कहती हो। प्राचीन भारत में विज्ञान के विभिन्न शाखाओं को शास्त्र कहते थे-आयुर्वेदशास्त्र में चरकसंहिता और सुश्रुतसंहिता शास्त्रकारों के नाम पर ही प्रसिद्ध हैं। उनमें रसायनविज्ञान और भौतिकविज्ञान अन्तर्भूत हैं। ज्योतिषशास्त्र में भी खगोलविज्ञान, गणित इत्यादि शास्त्र सन्निहित हैं । आर्यभट्ट का ग्रन्थ आर्यभट्टीय नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रकार वारहमिहिर का वृहत्संहिता विशाल ग्रन्थ है जिसमें नाना विषय समन्वित हैं। वास्तुशास्त्र भी यहाँ एक व्यापक शास्त्र था। कृषिविज्ञान की रचना परासर ने किया । वास्तव में शास्त्रकारों की थोड़ी संख्या नहीं है, अर्थात्  हमारे यहाँ शास्त्रों और शास्त्रकारों की बहुत विशाल संख्या और उनकी परम्परा है।

वर्गनायकः- गुरुदेव ! अद्य बहुज्ञातम्। प्राचीनस्य भारतस्य गौरवं सर्वथा समृद्धम् । (शिक्षकः वर्गात् निष्क्रामति। छात्राः अनुगच्छन्ति)

हिन्दी - गुरुदेव ! आज बहुत जान गया। प्राचीन भारत का गौरव सर्वथा समाद्रित और समृद्ध है। (शिक्षक वर्ग से निकलते हैं और छात्र भी उनके पीछे-पीछे निकलते हैं।)

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10th Sanskrit (संस्कृत)

Chapter 1 मङ्गलम्  click here!

Chapter 2 पाटलिपुत्रवैभवम्  click here!

Chapter 3 अलसकथा  click here!

Chapter 4 संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः  click here!

Chapter 5 भारतमहिमा  click here!

Chapter 6 भारतीयसंस्काराः  click here!

Chapter 7 नीतिश्लोकाः  click here!

Chapter 8 कर्मवीर कथा  click here!

Chapter 9 स्वामी दयानन्दः  click here!

Chapter 10 मंदाकिनीवर्णनम्  click here!

Chapter 11 व्याघ्रपथिककथा  click here!

Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता  click here!

Chapter 13 विश्वशान्तिः  click here!

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