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10 संस्कृत पाठ 2 पाटलिपुत्रवैभवम् | 10 class sanskrit chapter 2 पाटलिपुत्र



पाठ-परिचय 

बिहार राज्य की राजधानी पटना अनादि काल से विद्या, धर्म, राजनीति, उद्योग आदि के क्षेत्र में अग्रगण्य रहा है। महान शासक अशोक, महान् अर्थशास्त्री एवं नीतिज्ञ चाणक्य इसी भूमि की देन हैं। मेगास्थनीज, ह्वेनसांग, फाह्यान तथा इत्सिंग आदि विद्वानों ने इसकी विशेषताओं की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। पतितपावनी गंगा के किनारे बसा यह नगर अपने वैभव के लिए इतिहास प्रसिद्ध है। यह कहना गलत नहीं होगा कि पाटलिपुत्र अपनी गौरवमयी श्रीसम्पदा से विदेशियों को आकृष्ट करता रहा है।

मूल पाठ 

प्राचीनेषु भारतीयेषु नगरेष्वन्यतमं पाटलिपुत्रमनुगङ्ग वसद्विचित्रं महानगरं बभूव। तद्विषये दामोदरगुप्तो नाम कविः कुट्टनीमताख्ये काव्ये कथयति-

अस्ति महीतलतिलकं सरस्वतीकुलगृहं महानगरम् ।

पाटलिपुत्रं परिभूतपुरन्दरस्थानम् ॥

इतिहासे श्रूयते यत् गङ्गायास्तीरे बुद्धकाले पाटलिग्रामः स्थितः आसीत् । यत्र च भगवान् बुद्धः बहुकृत्वः समागतः । तेन कथितमासीत् यद् ग्रामोऽयं महानगरं भविष्यति, किन्तु कलहस्य अग्निदाहस्य जलपूरस्य च भयात् सर्वदाक्रान्तं भविष्यति । कालान्तरेण पाटलिग्रामः एव पाटलिपुत्रमिति कथितः । चन्द्रगुप्तमौर्यस्य काले अस्य नगरस्य शोभा रक्षाव्यवस्था च अत्युत्कृष्टासीदिति यूनानराजदूतः मेगास्थनीजः स्वसंस्मरणेषु निरूपयति । अस्य नगरस्य वैभवं प्रियदर्शिन: अशोकस्य समये सुतरां समृद्धम् ।

बहुकालं पाटलिपुत्रस्य प्राचीना सरस्वतीपरम्परा प्रावर्तत इति राजशेखरः स्वकाव्यमीमांसा- नामके कविशिक्षाप्रमुखे ग्रन्थे सादरंम् स्मरति

अनोपवर्षवर्षाविह पाणिनिपिङ्गलाविह व्याडिः ।

वररुचिपतञ्जली इह परीक्षिताः ख्यातिमुपजग्मुः ।।

हिन्दी प्राचीन भारतीय नगरों में गंगा के किनारे बसा हुआ पाटलिपुत्र महानगर अत्यंत और विचित्र था। इसके बारे में दामोदर गुप्त नाम का कवि अपनी 'कुट्टनीमन' नामक काव्य में कहता है-

पृथ्वी के तिलक स्वरूप और सरस्वती का कुलगृह जैसा, इन्द्रपुरी को भी परिभूत करनेवाला पाटलिपुत्र नाम का महानगर है। इतिहास से ज्ञात होता है कि बुद्धकाल में गंगा के किनारे पाटलिग्राम स्थित था और यहाँ भगवान बुद्ध बहुत बार पधारे थे। उनके द्वारा कहा गया कि यह ग्राम महानगर बनेगा, किन्तु कलह, अग्निदाह और जलप्लावन (बाढ़) का भय से सर्वदा भयभीत रहेगा। कुछ दिनों के बाद पाटलिग्राम ही पाटलिपुत्र नाम से पुकारा गया । चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में इस नगर की शोभा और रक्षा-व्यवस्था अत्यन्त उत्कृष्ट थी, जैसा कि यूनान राजदूत मेगास्थनीज ने अपना स्मरण में लिखा है। इस नगर का वैभव और सौन्दर्य अशोककाल में अत्यन्त, अर्थात् सबसे उत्तम था। बहुत दिनों तक पाटलिपुत्र का प्राचीन सरस्वती परम्परा बनी रही। ऐसा राजशेखर ने अपनी 'काव्यमीमांसा' नाम की कविशिक्षा के प्रमुख ग्रन्थ में आदर के साथ स्मरण किया है। यहाँ विश्व के मूर्धन्य विद्वान उपवर्ष, वर्ष, पाणिनि, पिंगलाचार्य व्याडि वररूचि, पतञ्जली आदि परीक्षित होकर ही संसार में ख्याति अर्जित किये।

मूल पाठ : 

कतिपयेषु प्राचीनसंस्कृतग्रन्थेषु पुराणादिषु पाटलिपुत्रस्य नामान्तरं पुष्पपुरं कुसुमपुरं वा प्राप्यते । अनेन ज्ञायते यत् नगरस्यास्य समीपे पुष्पाणां बहुलमुत्पादनं भवति स्म । पाटलिपुत्रमिति शब्दोऽपि पाटलपुष्पाणां पुत्तलिकारचनामाश्रित्य प्रचलितः । शरत्काले नगरेऽस्मिन् कौमुदीमहोत्सवः इति महान् समारोहः गुप्तवंशशासनकाले अतीव प्रचलितः । तत्र सर्वे जनाः आनन्दमग्नाः अभूवन् । सम्प्रति दुर्गापूजावसरे तादृशः एव समारोहः दृश्यते ।

हिन्दी- 

कुछ प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में पुराणादि में पाटलिपुत्र का नामान्तर पुष्पपुर या कुसुमपुर भी प्राप्त होते हैं । इससे ज्ञात होता है कि इस नगर के समीप पुष्पों की अत्यधिक उत्पादन होता था। पाटलिपुत्र शब्द भी गुलाब के फूल से पुत्तलिका रचना की कला को लेकर ही बना और प्रचलित हुआ। इस नगर में शरदऋतु के अभ्यन्तर कौमुदी महोत्सव का समारोह गुप्तवंश के शासन काल में अतीव प्रचलित था। उस समय सभी लोग आनन्द मग्न हो जाते थे। अभी भी दुर्गापूजा के अवसर पर यहाँ उसी प्रकार का समारोह देखा जाता है।

मूल पाठ : 

कालचक्रवशाद् यद्यपि मध्यकाले पाटलिपुत्रं वर्षसहस्रपरिमितं जीर्णतामन्वभूत् । तस्य सङ्केतः अनेकेषु साहित्यग्रन्थेषु मुद्राराक्षसादिषु लभ्यते । मुगलवंशकाले अस्य नगरस्य समुद्धारो जातः । आंग्लशासनकाले च पाटलिपुत्रस्य सुतरां विकासो जातः । नगरमिदं मध्यकाले एव पटनति नाम्ना प्रसिद्धिमगात् । अयं च शब्दः पत्तनमिति शब्दात् निर्गतः । नगरस्य पालिका देवी पटनदेवीति अद्यापि पूज्यते ।

हिन्दी-

परिवर्तित समय के कारण यद्यपि मध्यकाल में पाटलिपुत्र लगभग एक हजार वर्ष पर्यन्त भग्नावस्था अनुभव किया। इसका संकेत अनेक साहित्य-ग्रन्थों में मुद्राराक्षसादि ग्रन्थों में मिलते हैं। मुगल वंश के समय इस नगर का उद्धार हुआ और अंग्रेजी शासनकाल में पाटलिपुत्र का शीघ्र विकास हुआ। यह शब्द 'पत्तन' शब्द से निकला है। नगर को पालनेवाली देवी पटनदेवी आज भी पूजी जाती है।

मूल पाठ : 

सम्प्रति पाटलिपुत्रम् (पटना नाम नगरम्) अति विशालं वर्तते बिहारस्य राजधानी चास्ति । अनुदिनं नगरस्य विस्तारः भवति । अस्योत्तरस्यां दिशि गङ्गा नदी प्रवहति । तस्या उपरि गाँधीसेतुर्नाम एशियामहादेशस्य दीर्घतमः सेतुः किञ्च रेलयानसेतुरपि निर्मीयमानो वर्तते । नगरेऽस्मिन् उत्कृष्टः संग्रहालयः उच्चन्यायालयः सचिवालयः, गोलगृहम्, तारामण्डलम्, जैविकोद्यानम्, मौर्यकालिकः अवशेषः महावीरमन्दिरम्-इत्येते दर्शनीयाः सन्ति । प्राचीनपटनानगरे सिखसम्प्रदायस्य पूजनीयं स्थलं दशमगुरोः गोविन्दसिंहस्य जन्मस्थानं गुरुद्वारेति नाम्ना प्रसिद्धं वर्तते । तत्र देशस्यास्य तीर्थयात्रिणः दर्शनार्थमायान्ति।

हिन्दी-

सम्प्रति पटना नाम का नगर अतिविशाल और बिहार की राजधानी है। दिन-प्रतिदिन नगर का विस्तार हो रहा है। इसके उत्तर में गंगा नदी बहती है। इसके ऊपर गाँधी सेतु नाम का एशिया महादेश का सबसे बड़ा सेतु है, किन्तु रेलवे सेतु अभी निर्माणाधीन है। इस नगर के उत्कृष्ट संग्रहालय, उच्च न्यायालय, सचिवालय, गोलगृहम्, तारामण्डलम्, जैविकोद्यान, मौर्यकालिन अवशेष, महावीर मन्दिरादि दर्शनीय हैं। प्राचीन पटना नगर में सिक्ख सम्प्रदाय के द्वारा पूजनीय स्थल दशम गुरु गोविन्द सिंह का जन्म-स्थान गुरुद्वारे के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ देश के तीर्थयात्रीगण दर्शन के लिए आते हैं।

मूल पाठ : 

एवं पाटलिपुत्रं प्राचीनकालात् अद्यावधि विभिन्नेषु क्षेत्रेषु वैभवं धारयति सर्व च संकलितरूपेण संग्रहालये दर्शनीयमिति।।पर्यटनमानचित्रे नगरमिदं महत्त्वपूर्णम् ।

हिन्दी-

इस तरह पाटलिपुत्र प्राचीनकाल से अब तक विभिन्नक्षेत्रों में वैभव (गरिमा) धारण करता है और उन सबों को संकलित रूप में संग्रहालय जाकर देख सकते हैं। पर्यटन मानचित्र में यह नगर महत्त्वपूर्ण है।

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10th Sanskrit (संस्कृत)

Chapter 1 मङ्गलम्  click here!

Chapter 2 पाटलिपुत्रवैभवम्  click here!

Chapter 3 अलसकथा  click here!

Chapter 4 संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः  click here!

Chapter 5 भारतमहिमा  click here!

Chapter 6 भारतीयसंस्काराः  click here!

Chapter 7 नीतिश्लोकाः  click here!

Chapter 8 कर्मवीर कथा  click here!

Chapter 9 स्वामी दयानन्दः  click here!

Chapter 10 मंदाकिनीवर्णनम्  click here!

Chapter 11 व्याघ्रपथिककथा  click here!

Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता  click here!

Chapter 13 विश्वशान्तिः  click here!

Chapter 14 शास्त्रकाराः  click here!


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