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10 क्लास संस्कृत भारत महिमा 10th क्लास पंचम पाठ संस्कृत भारत महिमा




पाठ-परिचय- 

प्रस्तुत पाठ 'भारत महिमा' में भारत की विशेषताओं का वर्णन किया गया है। यह देश सृष्टि के आरंभ से ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा-संस्कृति, धर्म-राजनीति आदि के क्षेत्र में समुन्नत रहा है। इसे धरती का स्वर्ग कहा गया है। विश्व के प्रथम ग्रंथ वेद की रचना यहीं हुई है। इसी विशेषता के कारण ईश्वर भी भारत में ही अवतरित हुआ है। बाल्मीकि एवं व्यास आदि ने इस देश का गौरव बढ़ाया है। इस देश की रचना प्रभु ने अपने हाथों से की है। प्रथम एवं द्वितीय श्लोक भागवत् पुराण से संकलित है तो अन्य पद देशभक्ति भाव से लबालब कवियों की रचना है।


मूल पाठ : (अस्मार्क देशः ............ वर्तते।)

हिन्दी— हमारे देश को भारतवर्ष कहा जाता है। इसकी महिमा सर्वत्र गायी जाती है। इस पाठ में विष्णुपुराण और भागवतपुराण से क्रमशः पहला और दूसरा पद्य लिए गये हैं। शेष पद्य अध्यक्ष के द्वारा बनाकर प्रस्तुत किये गये हैं। भारत के प्रति हमारी भक्ति कर्तव्यस्वरूप है।


गायन्ति देवाः किल गीतकानि

                  धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।

स्वर्गापवर्गस्पिदमार्गभूते भवन्ति

                   भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥


मूल पाठ:

हिन्दी-व मनुष्य धन्य हैं जो स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाला पवित्र भारत भू पर जन्म लेते हैं। देवता भी इस भू पर पुनः-पुनः आने के लिए इसका यश गाते हुए प्रार्थना किया करते हैं।

व्याख्या :

प्रस्तुत श्लोक 'विष्णुपुराण' से संकलित तथा भारतमहिमा पाठ से उद्धृत है। इसमें भारत देश की विशेषताओं के बारे में कहा गया है। यह देश धरती पर स्वर्ग के समान माना जाता है। पुराणकार का कहना है कि यह भूमि स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करने वाली है। यहाँ जन्म लेने वाले देवतुल्य माने जाते हैं क्योंकि राम-कृष्ण जैसे अति मानव ने जन्म लेकर इस भूमि के महत्त्व को सिद्ध कर दिया है। तात्पर्य यह कि भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ भगवान अत्याचारियों का अंत करने तथा धर्म  की स्थापना हेतु अवतरित होते हैं। इसलिए इस देश में जन्म लेने वालों को देवता रूप में माना जाता रहा है। यह भूमि ऋषि-मुनियों की यज्ञस्थली देशभक्तों की कर्मस्थली तथा श्रद्धालुओं की धर्मस्थली है। अतएव हमें मन-वचन तथा कर्म से देश की आन-मान-शान की रक्षा के लिए सतत् तत्पर रहना चाहिए।


अहो अमीषां किमकारि शोभनं,

              प्रसन्न एषां स्विदुत स्वयं हरिः ।

यैर्जन्म लब्धं नृषु भारताजिरे,

              मुकुन्दसेवौपयिकं स्पृहा हि नः ॥


हिन्दी :

देवता कहते हैं कि हमने कौन-सी विशेष इच्छा व्यक्त की है। हमने तो भारताजिर में मनुष्यों के बीच भगवान कृष्ण, अर्थात् मुकुन्द जो जन्मग्रहण करते हैं, उनकी सेवा की स्पृहा (इच्छा) व्यक्त की है। अर्थात्, भारत में जन्म लेकर समय-समय पर भारत में जन्मग्रहण करनेवाले भगवान मुकुन्द की सेवा कर सके।

व्याख्या- 

प्रस्तुत श्लोक भागवतपुराण से संकलित तथा 'भारतमहिमा' पाठ से उद्धृत है। इसमें भारत देश की महानता का वर्णन किया गया है। कवि का कहना है कि भारत ही ऐसा देश है जहाँ भगवान भी जन्म लेने की इच्छा प्रकट करते हैं। इस देश में जन्म लेनेवाले मनुष्य धन्यवाद के पात्र होते हैं क्योंकि वे श्रीहरि की सेवा के इच्छुक होते हैं। जिन लोगों ने यहाँ जन्म लिया, उनमें स्वयं भगवान भी हैं। उन्होंने मानव रूप में अवतरित होकर यहाँ की भूमि को पवित्र बना दिया। इन्हीं विशेषताओं के कारण देवता इस देश का गुणगान करते हैं।


मूल पाठ : 

इयं निर्मला वत्सला मातृभूमिः,

                प्रसिद्ध सदा भारतं वर्षमेतत् ।

विभिन्ना जना धर्मजातिप्रभेदै-

                रिहैकत्वभावं वहन्तो वसन्ति ।।

हिन्दी- 

यह निर्मल स्वच्छ और ममतामयी भारतवर्ष अपने इन विशेषताओं के लिए सदा प्रसिद्ध रहा है। यहाँ विभिन्न लोग धर्म, जाति और सारे भेदभावों को छोड़कर एकता की भाव से निवास करते हैं। यह प्रत्येक दृष्टि से अनेकता में एकता है।

व्याख्या- 

प्रस्तुत श्लोक 'भारतमहिमा' पाठ से उद्धृत है। इसमें भारत देश की विशेषता का वर्णन किया गया है। विद्वानों का कहना है कि भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न जाति के लोग आपस में मिल-जुलकर रहते हैं तथा अनेकता में एकता को चरितार्थ करते हैं। तात्पर्य यह कि भारतीय निष्कपट तथा दयावान होते हैं। यहाँ के निवासियों ने शत्रुओं के साथ भी मित्रता का व्यवहार किया है। भिन्न-भिन्न जाति, धर्म, सम्प्रदाय के होते हुए भी सभी भाई-भाई के समान रहते हैं तथा देश पर आई विपत्ति का मिलकर सामना करते हैं। 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' इसी देश का विचार है। इसी विशेषता के कारण ह्वेनसांग, फाह्यान आदि लोगों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। विश्व को शांति एवं अहिंसा का पाठ इसी देश ने पढ़ाया। अतः हमारा देश भारत एक ऐसा उद्यान है जिसमें विभिन्न प्रकार के फूल होते हुए उस उद्यान की शोभा बढ़ाने में चार चाँद लगाते हैं।


मूल पाठ : 

विशालास्मदीया धरा भारतीया,

                  सदा सेविता सागरै रम्यरूपा।

वनैः पर्वतैर्निर्झरैभव्यभूति-

                    वहन्तीभिरेषा शुभा चापगाभिः ।।


हिन्दी- 

हमारा यह भारतीय भूमि सर्वदा सागर से सवित और सुन्दर है। वन, पर्वत, निर्झर से युक्त भव्य ऐश्वर्यवाली है। जहाँ सदनीरा पवित्र से नदियाँ बहती हैं। इसकी पवित्रता और प्राकृतिक छटा मानवों के लिए तो क्या स्वर्गवासी देवताओं के लिए भी आकर्षक है।

व्याख्या-

प्रस्तुत श्लोक भारतमहिमा' पाठ से लिया गया है। इसमें भारत की विशालता एवं प्राकृतिक सम्पदा के संबंध में प्रकाश डाला गया है। कवि का कहना है कि भारत एक विस्तृत देश है। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत प्रहरी के समान विद्यमान है तो दक्षिण में हिन्द महासागर पाँव पखार रहा है। गंगा, यमुना तथा ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ अपने जल से यहाँ की भूमि को सींचती हैं तो वनों से मूल्यवान लकड़ियाँ एवं फल-फूल मिलते हैं। तात्पर्य यह कि विधाता ने भारत को सारी सुविधाओं से युक्त बनाया है। इसके पर्वतीय क्षेत्र विभिन्न प्रकार के खनिजों से पूर्ण है। यहाँ ऋतु के अनुसार फल-फूल मिलते हैं तथा वातावरण में परिवर्तन होता रहता है।


जगद्गौरवं भारतं शोभनीयं,

              सदास्माभिरेतत्तथा पूजनीयम् ।

भवेद देशभक्तिः समेषां जनानां,

                परादर्शरूपा सदावर्जनीया ॥


हिन्दी- 

हमारा गौरवशील देश भारत शोभाओं से युक्त है और हमलोगों के द्वारा सर्वदा पूजनीय है। हम सबों को देश के प्रति आदर और भक्ति होनी चाहिए। श्रेष्ठ और आदर्शस्वरूप मातृभूमि आकर्षण का केन्द्र एवं नमन योग्य है

व्याख्या: 

प्रस्तुत श्लोक 'भारतमहिमा' पाठ से 'भारतमहिमा' पाठ से उद्धृत है। इसमें देशभक्ति की विशेषता पर प्रकाश डाला गया है। कवि का कहना है कि हमारी देशभक्ति इतनी उत्कृष्ट हो कि विश्व इसे आदर्शस्वरूप मान अर्थात् हमारा आचरण इतना आदर्श तथा श्रेष्ठ हो कि संसार इसके समक्ष नतमस्तक हो जाए। हर व्यक्ति में देशभक्ति की उत्कृष्ट भावना हो। सभी देश के गौरव की रक्षा के लिए तन-मन-धन से समर्पित हो। अपने आदर्श आचरण के कारण सदा शोभनीय तथा पूजनीय बना रहे। क्योंकि भारत अपने आदर्श विचार के कारण ही सदा से सबका पूज्य रहा है। कवि की हार्दिक कामना है कि हमारे देश के सभी लोग अपने आदर्श रूप को कायम रखें।

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