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10th क्लास संस्कृत पाठ 6 भारतीय संस्कार | भारतीयसंस्काराः

 


पाठ-परिचय-

प्रस्तुत पाठ 'भारतीयसंस्काराः' में विभिन्न प्रकार के संस्कारों के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। भारत धर्मप्रधान देश है। धर्म की प्रधानता के कारण यहाँ जन्म से मृत्युपर्यन्त अनेक प्रकार के संस्कारों से संस्कारित होना पड़ता है। यथा-नामकरण संस्कार, मुंडन, अक्षरारंभ, उपनयन, विवाह आदि। इन संस्कारों से व्यक्ति के जीवनमूल्य का संवर्द्धन होता है। यद्यपि इस पाठ में व्यंग्यात्मक रूप में उल्लिखित है कि जैसे-जैसे भौतिकता के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे इन संस्कारों का महत्त्व घटता जा रहा है। इसलिए लेखक की सलाह है कि भारतीय मूल्यों को कायम रखने के लिए इन संस्कारों को कायम रखना आवश्यक है।


मूल पाठ : (भारतीयसंस्कृतेः .......... निरुपितम् )


हिन्दी-

भारतीय संस्कृति का अत्यन्त वैशिष्ट्य है कि जीवन में समय-समय पर संस्कार मनाये जाते हैं। आज संस्कार शब्द व्यंग्य रूप में प्रयुक्त होता है, किन्तु संस्कृति का यह उपकरण ही भारत के व्यक्तित्व का निर्माण करता है। विदेश में रहनेवाले भारतीय लोग भी संस्कारों के प्रति सजग और उन्हें जानने की इच्छा रखते हैं। इस पाठ में उन भारतीय संस्कारों का संक्षिप्त परिचय और महत्त्व निरूपित हैं।


मूल पाठ : 

भारतीयजीवने प्राचीनकालतः संस्काराः महत्त्वमधारयन् । प्राचीनसंस्कृतेरभिज्ञानं संस्कारेभ्यो जायते । अत्र ऋषीणां कल्पनासीत् यत् जीवनस्य सर्वेषु मुख्यावसरेषु वेदमन्त्राणां पाठः, वरिष्ठाणाम् आशीर्वादः, होमः, परिवारसदस्यानां सम्मेलनं च भवेत् । तत् सर्व संस्काराणामनुष्ठाने संभवति । एवं संस्काराः महत्त्वं धारयन्ति । किञ्च संस्कारस्य मौलिकः अर्थः परिमार्जनरूपः गुणाधानरूपश्च न विस्मर्यते। अतः संस्काराः मानवस्य क्रमशः परिमार्जने दोषापनयने गुणाधाने च योगदानं कुर्वन्ति। 


हिन्दी-

संस्कार प्राचीनकाल से ही भारतीय जीवन में महत्त्व रखते हैं। प्राचीन संस्कृति को जानने के लिए संस्कार किये जाते हैं । इस संबंध में ऋषियों की कल्पना थी कि जीवन के सभी मुख्य अवसरों पर वेदमंत्रों का पाठ, बड़ों का आशीर्वाद, होम, परिवार के सभी सदस्य का मिलन, ये सभी संस्कारों का अनुष्ठान् करते समय ही संभव है। इस प्रकार संस्कार हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है, किन्तु संसार का विशेष और मौलिक अर्थ पवित्रता, शुद्धता और मनुष्य में गुणों का निरूपित करना होता है। इसलिए संस्कार मानव की शुद्धता, दोषों को दूर करना और गुणों को निरूपित करने में सहायता करते हैं।


मूल पाठ : 

संस्काराः प्रायेण पञ्चविधाः सन्ति-जन्मपूर्वास्त्रयः, शैशवाः षट्, शैक्षणिकाः पञ्च, गृहस्थसंस्कारः विवाहरूपः एकः, मरणोत्तरसंस्कारश्चैकः । एवं षोडश संस्काराः भवन्ति । जन्मपूर्वसंस्कारेषु गर्भाधानं पुंसवनं सीमन्तोनयनं चेति त्रयो भवन्ति । अत्र गर्भरक्षा, गर्भस्थस्य संस्कारारोपणम्, गर्भवत्याश्च प्रसन्नता चेति प्रयोजन कल्पितमस्ति । शैशवसंस्कारेषु जातकर्म, नामकरणम्, निष्क्रमणम्, अन्नप्राशनम्, चूडाकर्म, कर्णवेधश्चेति क्रमशो भवन्ति ।


हिन्दी-

संस्कार प्रायः पाँच प्रकार के होते हैं। जन्म के पूर्व तीन, वाल्यावस्था में छः, शिक्षा- संबंधी पाँच, गृहस्थ संस्कार विवाह रूप में एक और मरण के बाद एक । इस प्रकार सोलह संस्कार होते हैं। जन्म के पूर्व संस्कारों में गर्भाधान, पुंसवन और सीमन्तोनयन तीन होते हैं। इसमें गर्भरक्षा, गर्भस्थ शिशु में उत्तम संस्कार का आरोधन, गर्भवती की प्रसन्नता का प्रयोजन कहा गया है। शैशव संस्कारों में जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्रासन, चूडाकर्म और कर्णवेध क्रमशः होते हैं।


मूल पाठ : 

शिक्षासंस्कारेषु अक्षरारम्भः, उपनयनम्, वेदारम्भः, केशान्तः समावर्तनञ्चेति संस्काराः प्रकल्पिताः । अक्षरारम्भे अक्षरलेखनम् अङ्कलेखनं च शिशुः प्रारभते । उपनयनसंस्कारस्य अर्थः गुरुणा शिष्यस्य स्व गृहे नयनं भवति। तत्र शिष्यः शिक्षानियमान् पालयन् अध्ययन करोति। ते नियमाः ब्रह्मचर्यव्रते समाविष्टाः। प्राचीनकाले शिष्यः ब्रह्मचारी इति कथ्यते स्म । गुरुगृहे एव शिष्यः वेदारम्भं करोति स्म । वेदानां महत्त्वं प्राचीनशिक्षायाम् उत्कृष्टं मन्यते स्म । केशान्तसंस्कारे गुरुगृहे एव शिष्यस्य प्रथमं क्षौरकर्म भवति स्म । अत्र गोदानं मुख्यं कर्म । अतः साहित्यग्रन्थेषु अस्य नामान्तरं गोदानसंस्कारोऽपि लभ्यते । समावर्त्तनसंस्कारस्योद्देश्यं शिष्यस्य गुरुगृहात् गृहस्थजीवने प्रवेशः। शिक्षावसाने गुरुः शिष्यान् उपदिश्य गृहं प्रेषयति । उपदेशेषु प्रायेण जीवनस्य धर्माः प्रतिपाद्यन्ते । यथा-सत्यं वद, धर्म चर, स्वाध्यायान्मा प्रमदः इत्यादि।


हिन्दी -

शिक्षा संस्कारों में अक्षरारम्भ, उपनयन, वेदारम्भ, केशान्त और समावर्तन संस्कारों की परिकल्पना की गई है। अक्षरारम्भ में शिशु अक्षर-लेखन और अंक-लेखन प्रारम्भ करते हैं। उपनयन संस्कार का अर्थ होता है गुरु के द्वारा शिष्य को अपने घर (गुरुकुल) ले जाना जहाँ शिष्य शिक्षा नियमों का पालन करते हुए अध्ययन करता है। वे नियम हैं-ब्रह्मचर्यव्रत में सम्मिलित होना। प्राचीन काल में शिष्य ब्रह्मचारी कहे जाते थे। गुरु-गृह में ही शिष्य वेदाध्ययन शुरू करता था। वेदों का अध्ययन प्राचीन शिक्षा में उत्कृष्ट माना जाता था। केशान्त संस्कार में गुरुगृह में ही शिष्य का प्रथम क्षौर कर्म होता था। यहाँ गोदान मुख्य कर्म था। इसलिए, साहित्य-ग्रन्थों में इसका परिवर्तित नाम गोदान संस्कार भी मिलते हैं समवर्तन संस्कार का अर्थ या उद्देश्य है शिष्य को गुरुगृह से गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना । शिक्षा-समाप्ति पर गुरु शिष्यों को उपदेश देकर घर भेजते थे। उपदेशों में प्रायः जीवन के कार्यों, अर्थात् धर्मों का प्रतिपादन किया जाता था। जैसे—सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो, स्वाध्याय में प्रमाद न करो इत्यादि।


मूल पाठ : 

विवाहसंस्कारपूर्वकमेव मनुष्यः वस्तुतो गृहस्थजीवनं प्रविशति । विवाहः पवित्रसंस्कारः मतः यत्र नानाविधानि कर्मकाण्डानि भवन्ति । तेषु वाग्दानम्, मण्डपनिर्माणम्, वधूगृहे वरपक्षस्य स्वागतम्, वरवध्वोः परस्परं निरीक्षणम्, कन्यादानम्, अग्निस्थापनम्, पाणिग्रहणम्, लाजाहोमः, सप्तपदी, सिन्दूरदानम् इत्यादि। सर्वत्र समानरूपेण विवाहसंस्कारस्य प्रायेण आयोजनं भवति । तदनन्तरं गर्भाधानादयः संस्काराः पुनरावर्तन्ते जीवनचक्रं च भ्रमति। मरणादनन्तरम् अन्त्येष्टिसंस्कारः अनुष्ठीयते । एवं भारतीयजीवनदर्शनस्य महत्त्वपूर्णमुपादानं संस्कारः इति ।


हिन्दी- 

विवाह संस्कार के द्वारा ही मनुष्य वस्तुतः गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता था। विवाह एक पवित्र संस्कार है जिसमें विभिन्न प्रकार के कर्मकाण्ड होते हैं। इनमें वाग्दान, मण्डपनिर्माण, वधू के घर पर वर पक्ष का स्वागत, वर और वधू को परस्पर देखना, कन्यादान, अग्निस्थापन, पाणिग्रहण, लाजा (धान के लावे का) होम, सप्तपदी, सिन्दूरदान इत्यादि । सभी जगह प्रायः विवाह संस्कार का समान रूप से आयोजन होता है। इसके बाद गर्भाधानादि संस्कार पुनः प्रारम्भ होते हैं और जीवन-चक्र घूमता है। मरने के बाद अन्त्येष्टि संस्कार किया जाता है। इस प्रकार भारतीय जीवन-दर्शन का संस्कार महत्त्वपूर्ण उपादान है।

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10th Sanskrit (संस्कृत)

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