पाठ-परिचय-
प्रस्तुत पाठ 'व्याघ्रपथिककथा' नारायणपडित द्वारा लिखित हितोपदेश नामक कथाग्रंथ से संकलित है। कहानीकार ने पशु-पक्षियों के माध्यम से जीवन जीने की कला की शिक्षा दी है। हितोपदेश में बच्चों के मनोरंजन एवं नीति शिक्षा के सम्यक् ज्ञान के लिए पशु-पक्षियों से संबद्ध अनेक कहानियाँ वर्णित हैं। इन कहानियों के माध्यम से कहानीकार यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जीवन में आनेवाली समस्याओं का समाधान किस प्रकार किया जाए। प्रस्तुत कथा में लोभ के दुष्परिणामों पर प्रकाश डाला गया है कि लोभ के कारण ही ब्राह्मण वृद्ध बाघ के द्वारा मारा जाता है।
मूल पाठ :
(अयं पाठः ......... ज्ञायते)
हिन्दी :-
प्रस्तुत पाठ नारायण पण्डित विरचित हितोपदेश नामक नीतिग्रन्थ के मित्रलाभ नाम के भाग से संकलित है। हितोपदेश में बालकों के मनोरंजन और नीतिशिक्षण के लिए पशु-पक्षी से संबंधित अनेक कथाएँ सुनाई गई हैं। इस कथा में लोभ का दुष्परिणाम प्रकट होता है। पशु-पक्षियों के कथाओं का मूल्य मनुष्यों के शिक्षा के लिए पर्याप्त होता है, यह इस प्रकार की कथाओं से जाना जाता है।
मूल पाठ:
कश्चित् वृद्धव्याघ्रः स्नातः कुशहस्तः सरस्तीरे बूते भो भोः पान्थाः । इदं सुवर्णकङ्कणं गृह्यताम्।" ततो लोभाकृष्टेन केनचित्पान्थेनालोचितम्- भाग्येनैतत्संभवति। किंत्वस्मिन्नात्मसंदेहे प्रवृत्तिर्न विधेया।
हिन्दी:-
कोई बूढा बाघ स्नान करके और हाथ में कुश लेकर तालाब किनारे बोला—ऐ राहगीर !
यह सोने का कंगन ले लो। तब लोभ से आकर्षित कोई राहगीर सोचा। भाग्य से ही ऐसा संयोग होता है, किन्तु इसमें जान का खतरा है। अतः, इस कार्य में हाथ बँटाना ठीक नहीं।
श्लोक-
अनिष्टादिष्टलाभेऽपि न गतिर्जायते शुभा ।
यत्रास्ते विषसंसर्गोऽमृतं तदपि मृत्यवे॥
हिन्दी-
अनिष्ट से इष्ट की प्राप्ति होने पर भी परिणाम अच्छा नहीं होता है, क्योंकि विष के संसर्ग वाला अमृत भी मृत्यु के कारण होता है।
व्याख्या-
प्रस्तुत श्लोक 'व्याघ्रपथिकथा' पाठ से उद्धृत है। इसके माध्यम से मानव को यह शिक्षा दी गई है कि जहाँ अमंगल की आशंका होती है, वहाँ जाने से व्यक्ति को परहेज करना चाहिए। क्योंकि लाभ वहीं होता है जहाँ अनुकूल परिवेश होता है। प्रतिकूल परिवेश अथवा पात्र के सम्पर्क में जीवन-हानि की आशंका बन जाती है। जैसे विष के सम्पर्क में अमृत भी मृत्यु का कारण बन जाता है। तात्पर्य यह कि अविश्वसनीय पर विश्वास करने पर हानि उठानी पड़ती है।
मूल पाठ :
"किंतु सर्वार्थार्जने प्रवृत्तिः संदेह एव । तन्निरूपयामि तावत् ।" प्रकाशं बूते - कुत्र तव कङ्कणम् ? व्याघ्रो हस्तं प्रसार्य दर्शयति । पान्थोऽवदत्- कथं मारात्मके त्वयि विश्वासः ? व्याघ्र शृणु रे पान्थ ! प्रागेव यौवनदशायामतिदुर्वृत्त आसम् । अनेकगोमानुषाणां वधान्ये पुत्रा मृता दाराश्च । वंशहीनश्चाहम्। ततः केनचिद्धार्मिकेणाहमादिष्ट: - "दानधर्मादिकं चरतु भवान् ।" तदुपदेशादिदानीमहं स्नानशीलो दाता वृद्धो गलितनखदन्तो कथं न विश्वासभूमिः ? मया च धर्मशास्त्राण्यधीतानि । शृणु
हिन्दी :-
किन्तु अर्थाजन करने में तो सभी जगह सन्देह और खतरा है। इस बात को तब तक थोड़ा सोच लें - और प्रत्यक्ष रूप से बोला तुम्हारा कंगन कहाँ है ? बाघ हाथ पसारकर दिखाता है। राहगीर बोला तुम हिंसक जीव पर कैसे विश्वास करूँ ? बाघ बोला – ए राहगीर सुनो !
मैं पहले अपनी जवानी की अवस्था में अत्यन्त दुराचारी था। अनेक गायों और मनुष्यों को मारने से मेरा पुत्र और पत्नी मर गई, मैं वंशहीन हो गया। तब किसी धर्मात्मा ने मुझे आदेश दिया तुम दान तथा धार्मिक कार्य करो। उसके उपदेश से इस समय मैं स्नानादि कर दाता बन गया हूँ, वृद्ध हूँ मेरा नख और दाँत भी गल गये हैं। इस अवस्था में मैं कैसे विश्वासपात्र नहीं हूँ ? और, मैं धर्मशास्त्रों को पढ़ा हूँ
सुनो :-
दरिद्रान्भर कौन्तेय ! मा प्रयच्छेश्वरे धनम् ।
व्याधितस्यौषधं पथ्यं, नीरुजस्य किमौषधेः ॥
हिन्दी-
हे कौन्तेय ! दरिद्रों को धन दो, धनवानों को नहीं। रोगी के लिए ही दवा की आवश्यकता है नीरोगी के लिए दवा और पथ्य परहेज की जरूरत नहीं है।
व्याख्या :-
प्रस्तुत श्लोक 'व्याघ्रपथिककथा' पाठ से उद्धृत है। इसमें बाघ की दानशीलता संबंधी विचार पर प्रकाश डाला गया है। बाघ अपने को अहिंसक सिद्ध करने के लिए धर्मशास्त्रों का उदाहरण देते हुए कहता है कि दान वैसे व्यक्ति को देना चाहिए, जो दरिद्र है। अरे पथिक ! तुम अति निर्धन लगते हो। गीता में भी कहा है-हे कुन्तीपुत्र (युधिष्ठिर) दान-हीनों का भरण-पोषण करो, धनिकों को मत दो। रोगी को दवा देनी चाहिए, न कि नीरोग को। तात्पर्य यह कि असहाय को दान देने से ईश्वर प्रसन्न होते है तथा गरीब की आत्मा खिल उठती है।
प्रश्न 1. व्याघ्र पथिक कथा पाठ के रचयिता कौन हैं ?
उत्तर - नारायण पंडित
प्रश्न 2. व्याघ्र पथिक कथा किस ग्रंथ से प्रस्तुत है ?
उत्तर - हितोपदेश
प्रश्न 3. लोभ मनुष्य को कहां ले जाता है ?
उत्तर - विनास
प्रश्न 4. कौन स्नान किए हुए हाथ में कुछ लेकर तालाब के किनारे बोल रहा था ?
उत्तर - व्याघ्र
प्रश्न -5. पथिक कहां फंस गया ?
उत्तर - कीचड़ में
प्रश्न 6. कौन वंश हीन था ?
उत्तर - व्याघ्र
प्रश्न 7. कौन दुराचारी था ?
उत्तर - व्याघ्र
प्रश्न 8. कौन दान शील था ?
उत्तर - व्याघ्र
प्रश्न 9. व्याघ्र पथिक कथा किस ग्रंथ से लिया गया है ?
उत्तर - हितोपदेश
प्रश्न 10. क्रिया किसके बिना भाव स्वरूप हो जाता है ?
उत्तर - ज्ञान
प्रश्न 11. कौन लोभ से प्रभावित हुआ ?
उत्तर - पथिक
प्रश्न 12. व्याघ्र पथिक कथा से क्या दुष्परिणाम प्रगट होता है ?
उत्तर - लोभ
प्रश्न 13. 'कुत्र तव कंग्डम्' यह किसने कहा ?
उत्तर - पथिक ने
प्रश्न 14. 'व्याघ्र पथिक कथा' हितोपदेश के किस खंड से लिया गया है ?
उत्तर - मित्रलाभ खंड
प्रश्न 15. वृद्ध व्याघ्र क्या देना चाहता था ?
उत्तर - स्वर्ण कंगन
प्रश्न 16. पथिक किसके द्वारा मारा और खाया गया ?
उत्तर - बुड्ढे बाघ द्वारा
प्रश्न 17. व्याघ्र के हाथ में क्या था ?
उत्तर - स्वर्ण कंगन
प्रश्न 18. किस पर विश्वास नहीं करना चाहिए ?
उत्तर - हिंसक जीव पर
प्रश्न 19. हितोपदेश का अर्थ है ?
उत्तर - हीत का उपदेश
10th Sanskrit (संस्कृत)
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