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10th संस्कृत व्याघ्रपथिककथा 10th क्लास संस्कृत पाठ 11



पाठ-परिचय-

प्रस्तुत पाठ 'व्याघ्रपथिककथा' नारायणपडित द्वारा लिखित हितोपदेश नामक कथाग्रंथ से संकलित है। कहानीकार ने पशु-पक्षियों के माध्यम से जीवन जीने की कला की शिक्षा दी है। हितोपदेश में बच्चों के मनोरंजन एवं नीति शिक्षा के सम्यक् ज्ञान के लिए पशु-पक्षियों से संबद्ध अनेक कहानियाँ वर्णित हैं। इन कहानियों के माध्यम से कहानीकार यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जीवन में आनेवाली समस्याओं का समाधान किस प्रकार किया जाए। प्रस्तुत कथा में लोभ के दुष्परिणामों पर प्रकाश डाला गया है कि लोभ के कारण ही ब्राह्मण वृद्ध बाघ के द्वारा मारा जाता है।

मूल पाठ :

(अयं पाठः ......... ज्ञायते)

हिन्दी :-

प्रस्तुत पाठ नारायण पण्डित विरचित हितोपदेश नामक नीतिग्रन्थ के मित्रलाभ नाम के भाग से संकलित है। हितोपदेश में बालकों के मनोरंजन और नीतिशिक्षण के लिए पशु-पक्षी से संबंधित अनेक कथाएँ सुनाई गई हैं। इस कथा में लोभ का दुष्परिणाम प्रकट होता है। पशु-पक्षियों के कथाओं का मूल्य मनुष्यों के शिक्षा के लिए पर्याप्त होता है, यह इस प्रकार की कथाओं से जाना जाता है।

मूल पाठ:

कश्चित् वृद्धव्याघ्रः स्नातः कुशहस्तः सरस्तीरे बूते भो भोः पान्थाः । इदं सुवर्णकङ्कणं गृह्यताम्।" ततो लोभाकृष्टेन केनचित्पान्थेनालोचितम्- भाग्येनैतत्संभवति। किंत्वस्मिन्नात्मसंदेहे प्रवृत्तिर्न विधेया।

हिन्दी:-

कोई बूढा बाघ स्नान करके और हाथ में कुश लेकर तालाब किनारे बोला—ऐ राहगीर !

यह सोने का कंगन ले लो। तब लोभ से आकर्षित कोई राहगीर सोचा। भाग्य से ही ऐसा संयोग होता है, किन्तु इसमें जान का खतरा है। अतः, इस कार्य में हाथ बँटाना ठीक नहीं।

श्लोक- 

         अनिष्टादिष्टलाभेऽपि न गतिर्जायते शुभा ।

                 यत्रास्ते विषसंसर्गोऽमृतं तदपि मृत्यवे॥

हिन्दी-

अनिष्ट से इष्ट की प्राप्ति होने पर भी परिणाम अच्छा नहीं होता है, क्योंकि विष के संसर्ग वाला अमृत भी मृत्यु के कारण होता है।

व्याख्या- 

प्रस्तुत श्लोक 'व्याघ्रपथिकथा' पाठ से उद्धृत है। इसके माध्यम से मानव को यह शिक्षा दी गई है कि जहाँ अमंगल की आशंका होती है, वहाँ जाने से व्यक्ति को परहेज करना चाहिए। क्योंकि लाभ वहीं होता है जहाँ अनुकूल परिवेश होता है। प्रतिकूल परिवेश अथवा पात्र के सम्पर्क में जीवन-हानि की आशंका बन जाती है। जैसे विष के सम्पर्क में अमृत भी मृत्यु का कारण बन जाता है। तात्पर्य यह कि अविश्वसनीय पर विश्वास करने पर हानि उठानी पड़ती है।

मूल पाठ : 

"किंतु सर्वार्थार्जने प्रवृत्तिः संदेह एव । तन्निरूपयामि तावत् ।" प्रकाशं बूते - कुत्र तव कङ्कणम् ? व्याघ्रो हस्तं प्रसार्य दर्शयति । पान्थोऽवदत्- कथं मारात्मके त्वयि विश्वासः ? व्याघ्र शृणु रे पान्थ ! प्रागेव यौवनदशायामतिदुर्वृत्त आसम् । अनेकगोमानुषाणां वधान्ये पुत्रा मृता दाराश्च । वंशहीनश्चाहम्। ततः केनचिद्धार्मिकेणाहमादिष्ट: - "दानधर्मादिकं चरतु भवान् ।" तदुपदेशादिदानीमहं स्नानशीलो दाता वृद्धो गलितनखदन्तो कथं न विश्वासभूमिः ? मया च धर्मशास्त्राण्यधीतानि । शृणु 

हिन्दी :-

किन्तु अर्थाजन करने में तो सभी जगह सन्देह और खतरा है। इस बात को तब तक थोड़ा सोच लें - और प्रत्यक्ष रूप से बोला तुम्हारा कंगन कहाँ है ? बाघ हाथ पसारकर दिखाता है। राहगीर बोला तुम हिंसक जीव पर कैसे विश्वास करूँ ? बाघ बोला – ए राहगीर सुनो !

मैं पहले अपनी जवानी की अवस्था में अत्यन्त दुराचारी था। अनेक गायों और मनुष्यों को मारने से मेरा पुत्र और पत्नी मर गई, मैं वंशहीन हो गया। तब किसी धर्मात्मा ने मुझे आदेश दिया तुम दान तथा धार्मिक कार्य करो। उसके उपदेश से इस समय मैं स्नानादि कर दाता बन गया हूँ, वृद्ध हूँ मेरा नख और दाँत भी गल गये हैं। इस अवस्था में मैं कैसे विश्वासपात्र नहीं हूँ ? और, मैं धर्मशास्त्रों को पढ़ा हूँ 

सुनो :-

      दरिद्रान्भर कौन्तेय ! मा प्रयच्छेश्वरे धनम् ।

                व्याधितस्यौषधं पथ्यं, नीरुजस्य किमौषधेः ॥

हिन्दी-

हे कौन्तेय ! दरिद्रों को धन दो, धनवानों को नहीं। रोगी के लिए ही दवा की आवश्यकता है नीरोगी के लिए दवा और पथ्य परहेज की जरूरत नहीं है।

व्याख्या :-

प्रस्तुत श्लोक 'व्याघ्रपथिककथा' पाठ से उद्धृत है। इसमें बाघ की दानशीलता संबंधी विचार पर प्रकाश डाला गया है। बाघ अपने को अहिंसक सिद्ध करने के लिए धर्मशास्त्रों का उदाहरण देते हुए कहता है कि दान वैसे व्यक्ति को देना चाहिए, जो दरिद्र है। अरे पथिक ! तुम अति निर्धन लगते हो। गीता में भी कहा है-हे कुन्तीपुत्र (युधिष्ठिर) दान-हीनों का भरण-पोषण करो, धनिकों को मत दो। रोगी को दवा देनी चाहिए, न कि नीरोग को। तात्पर्य यह कि असहाय को दान देने से ईश्वर प्रसन्न होते है तथा गरीब की आत्मा खिल उठती है।


श्लोक - 

         दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
                   देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं विदुः ॥

हिन्दी :-

दान उसे कहते हैं जो बिना किसी प्रकार का उपकार किये
बिना दिया जाय । देश काल और यत्र का विचार कर दिया गया सात्विक दान होता है।

व्याख्या :-

व्याघ्रपथिककथा' पाठ से उद्धृत प्रस्तुत श्लोक के माध्यम
से सात्विक दान के विषय में कहा गया है। गीता में श्रीकृष्ण ने सात्विक दान के संबंध में कहा है कि जो दान समय (परिस्थिति), स्थान तथा पात्र की स्थिति को देखकर दिया जाता है अर्थात् कुलीन, असहाय एवं सद्पात्र को दिया गया दान सात्विक दान कहलाता है। साथ ही, दान देनेवाले से
किसी प्रकार के सहयोग की अपेक्षा का भाव भी नहीं होना चाहिए। यानी अपेक्षारहित सपात्र को दिया गया दान सात्विक दान कहलाता है। अतः बाघ इन तर्कों द्वारा ब्राह्मण को अपने वाग्जाल में फंसा लेता है और सोने का कंगल लेने के लिए राजी कर लेता है।

मूल पाठ : 

"तदत्र सरसि स्नात्वा सुवर्णकङ्कणं गृहाण।" ततो
यावदसौ तद्वचः प्रतीतो लोभात्सरः स्नातुं प्रविशति तावन्महापङ्के निमग्नः पलायितुमक्षमः । पङ्के पतितं दृष्ट्वा व्याघ्रोऽवदत् - "अहह, महापङ्के पतितोऽसि। अतस्त्वामहमुत्थापयामि।" इत्युक्त्वा शनैः शनैरुपगम्य तेन
व्यानेण धृतः स पान्थोऽचिन्तयत्

हिन्दी :-

इसलिए यहाँ तालाब में स्नान कर सोने का कंगन ले लो।
इसके बाद जब तक यह उसके वचनों पर विश्वास कर लोभ से तालाब में स्नान करने के लिए प्रवेश करता है तब वह गहरे पाँक में फंस जाता है और उससे निकलने में असमर्थ हो जाता है। उसे पाँक में फंसा देखकर बाघ बोला ओह ! विशाल पाँक में फंस गये हो । अतः मैं तुम्हें उठाता हूँ (निकालता हूँ)। इतना कहकर धीरे-धीरे चलकर उस बाघ ने उसे पकड़ लिया। तब वह पथिक ने सोचा

श्लोक- 

       अवशेन्द्रियचित्तानां हस्तिस्नानमिव क्रिया ।
                  दुर्भगाभरणप्रायो ज्ञानं भारः क्रियां विना ॥

हिन्दी :-

जैसे हाथी का स्नान निरर्थक होता है, चूँकि उसे कोई स्नान
क्रिया का बोध नहीं है उसी प्रकार अवश्य इन्द्रिय का चित्त और दुर्भाग का आभरण ज्ञान के बिना बेकार होता है। क्रियावान का ही ज्ञान सार्थक होता है अन्यथा क्रिया के बिना ज्ञान भारस्वरूप बन जाता है।

व्याख्या :-

प्रस्तुत श्लोक के माध्यम से कहानीकार नारायण पंडित ने
ब्राह्मण की मूर्खता के विषय में कहा है। कथाकार का कहना है कि व्यावहारिक ज्ञान के अभाव में शास्त्रीय ज्ञान व्यर्थ साबित होता है। इसीलिए कहा गया है कि जिस व्यक्ति की इन्द्रियाँ तथा मन नियंत्रित नहीं है, उसकी सारी क्रियाएँ हाथी के स्नान के समान है क्योंकि हाथी स्नान करने के बाद धूल एवं कीचड़ अपने ऊपर डालकर यह साबित कर देता है कि क्रिया अर्थात् व्यवहारिक ज्ञान के बिना शास्त्रीय ज्ञान बोझ के समान
होता है। अतः बाघ हिंसक पशु होता है, यह जानते हुए भी पथिक व्यावहारिक ज्ञान के अभाव में बाघ की बातों पर विश्वास करने के कारण मारा जाता है।

मूल पाठ :
 
इति चिन्तयन्नेवासौ व्याघ्रण व्यापादितः खादितश्च। अत उच्यते

हिन्दी :-

ऐसा सोचते हुए वह बाघ के द्वारा मार दिया गया और खा
लिया गया। अतः कहा गया है

श्लोक- 

           कङ्कणस्य तु लोभेन मग्नः पङ्के सुदुस्तरे ।
                    वृद्धव्या ण संप्राप्तः पथिकः स मृतो यथा॥

हिन्दी :-

कंगन के लोभ में राहगीर गम्भीर पांक में फँसकर बूढ़े बाघ
के द्वारा मृत्यु को प्राप्त हुआ।

व्याख्या :-

प्रस्तुत श्लोक के माध्यम से कथाकार ने सारे मानव को यह संदेश दिया है कि लोभ सम्पूर्ण पापों का मूल है। अतिलोभ के कारण ही व्यक्ति मानवता का त्यागकर पशुता का परिचय देता है। लोभ मनुष्य को निकृष्ट बना देता है। इसके कारण व्यक्ति को अपने जीवन से हाथ है। इसी लोभ के कारण पथिक बाघ का ग्रास होता है। अतएव मनुष्य को कोई भी काम करने से पहले सोच-समझकर कदम रखना चाहिए, ताकि पथिक के समान उसे भी जान नहीं गंवानी पड़े।

प्रश्न 1. व्याघ्र पथिक कथा पाठ के रचयिता कौन हैं ?

उत्तर - नारायण पंडित 

प्रश्न 2. व्याघ्र पथिक कथा किस ग्रंथ से प्रस्तुत है ?

उत्तर - हितोपदेश

प्रश्न 3. लोभ मनुष्य को कहां ले जाता है ?

उत्तर - विनास

प्रश्न 4. कौन स्नान किए हुए हाथ में कुछ लेकर तालाब के किनारे बोल रहा था ?

उत्तर - व्याघ्र 

प्रश्न -5. पथिक कहां फंस गया ?

उत्तर - कीचड़ में 

प्रश्न 6. कौन वंश हीन था ?

उत्तर - व्याघ्र 

प्रश्न 7. कौन दुराचारी था ?

उत्तर - व्याघ्र 

प्रश्न 8. कौन दान शील था ?

उत्तर - व्याघ्र 

प्रश्न 9. व्याघ्र पथिक कथा किस ग्रंथ से लिया गया है ?

उत्तर - हितोपदेश 

प्रश्न 10. क्रिया किसके बिना भाव स्वरूप हो जाता है ?

उत्तर - ज्ञान 

प्रश्न 11. कौन लोभ से प्रभावित हुआ ?

उत्तर - पथिक 

प्रश्न 12. व्याघ्र पथिक कथा से क्या दुष्परिणाम प्रगट होता है ?

उत्तर - लोभ 

प्रश्न 13. 'कुत्र तव कंग्डम्' यह किसने कहा ?

उत्तर - पथिक ने 

प्रश्न 14. 'व्याघ्र पथिक कथा' हितोपदेश के किस खंड से लिया गया है ?

उत्तर - मित्रलाभ खंड 

प्रश्न 15. वृद्ध व्याघ्र क्या देना चाहता था ?

उत्तर - स्वर्ण कंगन 

प्रश्न 16. पथिक किसके द्वारा मारा और खाया गया ?

उत्तर - बुड्ढे बाघ द्वारा 

प्रश्न 17. व्याघ्र के हाथ में क्या था ?

उत्तर - स्वर्ण कंगन 

प्रश्न 18. किस पर विश्वास नहीं करना चाहिए ?

उत्तर - हिंसक जीव पर

प्रश्न 19. हितोपदेश का अर्थ है ?

उत्तर - हीत का उपदेश

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10th Sanskrit (संस्कृत)

Chapter 1 मङ्गलम्  click here!

Chapter 2 पाटलिपुत्रवैभवम्  click here!

Chapter 3 अलसकथा  click here!

Chapter 4 संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः  click here!

Chapter 5 भारतमहिमा  click here!

Chapter 6 भारतीयसंस्काराः  click here!

Chapter 7 नीतिश्लोकाः  click here!

Chapter 8 कर्मवीर कथा  click here!

Chapter 9 स्वामी दयानन्दः  click here!

Chapter 10 मंदाकिनीवर्णनम्  click here!

Chapter 11 व्याघ्रपथिककथा  click here!

Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता  click here!

Chapter 13 विश्वशान्तिः  click here!

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