1.हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।
तत्त्वं पूषन्नापावृणु सत्यधर्माय दूष्टये ॥
अर्थ-: हे प्रभु सत्य का मुख सोने जैसा पात्र से ढका हुआ है, इसलिय लिए सत्य धर्म की प्राप्ति के लिए (मन से माया-मोह ) को त्याग दे , तभी सत्य धर्म की प्राप्ति संभव है|
व्याख्या - प्रस्तुत श्लोक ईशावस्य उपनिषद से संकलित तथा मंगलम पाठ से प्रस्तुत है ,इसमें सत्य के विषय में कहा गया है कि सांसारिक माया मोह के वशीभूत होने के कारण विद्वान भी उस सत्य की प्राप्ति नहीं कर पाते, क्योंकि सांसारिक चकाचौंध में वह सत्य इस प्रकार ढक जाता है, कि मनुष्य जीवन भर अनावश्यक भटकता रहता है इसलिए ईश्वर से प्रार्थना की गई है, कि हे प्रभु उस माया से मन को हटा दें ताकि परम पिता परमेश्वर से साक्षात्कार हो सके अथार्थ जीव प्रभु का दर्शन पाकर जीवन मरा के फंदे से मुक्त हो सके
2.अणोरणीयान् महतो महीयान् आत्मास्य जन्तोर्निहितो गुहायाम्।
तमकतुः पश्यति वीतशोको धातुप्रसादान्महिमानमात्मनः ।।
अर्थ – मनुष्य की आत्मा जीवो की हृदय रूपी गुफा में सूक्ष्म से सूक्ष्म और महान से भी महान रूप में विद्यमान है जिसे मंद बुद्धि वाला मानव भी उस आत्मा की महानता को देखकर शोक रहित हो जाता है
व्याख्या – प्रस्तुत श्लोक कठो उपनिषद’ तथा मंगलम पाठ से प्रस्तुत है | ऋषि-मुनियों तथा विद्वानों के द्वारा कहा गया है की मनुष्य की ह्रदय में छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी रूप में आत्मा निवास करती है | अगर उसका आभास हो जाता है यानि ज्ञान हो जाता है तो मंद बुद्धि वाला व्यक्ति भी शोक रहित हो जाता है यानि माया मोह को त्याग कर परमपिता परमात्मा में एकाकार हो जाता है |
3.सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः ।
येनाक्रमन्त्षयो ह्याप्तकामा यत्र तत् सत्यस्य परं निधानम् ।।
अर्थ :- सत्य की ही जीत होती है असत्य कि नहीं सत्य से ही परमेश्वर तक पहुंचने का मार्ग मिलता है जिससे ऋषि मुनि ज्ञानी उस परमात्मा को प्राप्त करना चाहते हैं आत्म कल्याण के लिए जिस सत्य मार्ग का ऋषि अनुसरण करते हैं वही परमात्मा तक पहुंचने का सच्चा मार्ग है
व्याख्या :- प्रस्तुत श्लोक मुंडकोपनिषद से संकलित तथा मंगलम पाठ से प्रस्तुत है , इसमें सत्य के महत्व पर प्रकाश डाला गया है ॠषि ज्ञानियों का संदेश है कि संसार में सत्य की ही जीत होती है असत्य की नहीं , सत्य से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है | जीव संसार के विषय वासना में डूबे रहने के कारण उस ईश्वर को भूल जाता है , संसार माया है सत्य केवल ईश्वर है इसलिए जीव अपने उद्धार और आत्म कल्याण के लिए उस परम सत्य के मार्ग का अनुसरण करते हैं जिससे कि वे जीव योनि से मुक्ति पा सके जीव तब तक उस माया जाल में फंसा रहता है जब तक उसे सत्य मार्ग का ज्ञान नहीं होता क्योंकि सत्य केवल ईश्वर है , इसके अतिरिक्त सब कुछ सत्य |
4.यथा नद्यः स्यन्दमानाः समुद्रेऽस्तं गच्छन्ति नामरूपे विहाय।
5.वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम् आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् ।
तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय ।।
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10th Sanskrit (संस्कृत)
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