6. ध्वनि
* ध्वनि ऊर्जा का एक रूप है जो सुनने की चेतना देती है।
* ध्वनि के गमन के लिए द्रव्यात्मक माध्यम (ठोस, द्रव एवं गैस) का होना आवश्यक है
* ध्वनि का वेग ठोस में सबसे अधिक, द्रव में उससे कम तथा गैस में सबसे कम होता है।
* ध्वनि निर्वात् से होकर नहीं गमन करती है।
* जब माध्यम से कण तरंग की दिशा में दोलन करता है तो उसे अनुदैर्घ्य तरंग कहते हैं।
* जब माध्यम के कण तरंग की दिशा के लम्बवत् दोलन करता है तो उसे अनुप्रस्थ तरंग कहते हैं।
* अनुदैर्घ्य तरंग का वह क्षेत्र जहाँ माध्यम के कण काफी सघन होते है, संपीडन कहलाता है तथा जहाँ माध्यम के कण विरल होते हैं, विरलन कहलाता है।
* अनुप्रस्थ तरंग में माध्य स्थिति से ऊपर उच्चतम बिन्दु को शृंग कहते हैं तथा माध्य स्थिति से नीचे न्यूनतम बिन्दु को गर्त कहते हैं।
* 1 sec में उत्पन्न दोलनों की संख्या को आवृत्ति कहते हैं।
* आवृत्ति का SI मात्रक हर्ट्ज कहते हैं।
1 kHz = 10³Hz
* 1 दोलन पूरा करने में लगे समय को आवर्तकाल कहते हैं।
* दो लगातार शृंगों अथवा दो लगातार गर्तो के बीच की दूरी को तरंगदैर्घ्य कहते हैं।
* आवृत्ति एवं आवर्तकाल का गुणनफल एक होता है।
* मध्यस्थिति से ऊपर या नीचे महत्तम विस्थापन को आयाम कहते हैं।
* ध्वनि का तारत्व उसके आवृत्ति से जाना जाता है। सुरीली ध्वनि का तारत्व अधिक होता है।
* ध्वनि की प्रबलता उसके आयाम द्वारा निर्धारित किया जाता है। आयाम जितना ही अधिक होगा उसकी प्रबलता उतनी ही अधिक होगी।
* जिस गुण के कारण समान आवृत्ति एक समान तारत्व वाले ध्वनि को विभेद किया जाता है गुणता कहलाती है।
* v = n lemda जहाँ v = ध्वनि का वेग, n = आवृत्ति एवं lemda = तरंगदैर्घ्य ।
* किसी विस्तृत अवरोध से ध्वनि के परावर्तित होकर उसे पुनः सुने जाने की घटना को ध्वनि की प्रतिध्वनि कहते हैं।
* प्रतिध्वनि सुनने के लिए ध्वनि स्रोत एवं स्रोता के बीच न्यूनतम दूरी लगभग 17 m होनी चाहिए।
* 20 Hz से नीचे की आवृत्ति वाले ध्वनि तरंग को अवश्रव्य तरंग कहते हैं।
* 20 Hz से 20,000 Hz के बीच वाली ध्वनि तरंग को श्रव्यता परास कहते हैं।
* 20,000 Hz से ऊपर वाली ध्वनि तरंग को पराश्रव्य तरंग कहते हैं।
* ऐसी युक्ति जो पनडुब्बी या समुद्र की गहराई का पता बताता है, सोनार कहलाती है।
* मानव कान के मुख्यतः तीन भाग होते हैं
(a) बाह्य कान, (b) मध्य कान, (c) आंतरिक कान।
भौतिकी कुछ प्रमुख बिंदु एवं समरणीय तथ्य
Chapter 1 Click here
Chapter 2 Click here
Chapter 3 Click here
Chapter 4 Click here
Chapter 5 Click here
Chapter 6 Click here
0 Comments